दूब या दुर्वा के औषधीय प्रयोग

यह घास एक बार लगा दी तो ज़्यादा देखभाल नहीं मांगती और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी आराम से बढती है . इसमें कीड़े भी नहीं लगते ..इसलिए लॉन में कोई अन्य घास लगा कर दुर्वा ही लगाना चाहिए .कहा जाता है की यह समुद्र मंथन से मिली थी
 , अतः यह लक्ष्मी जी की छोटी बहन है . दूर्वा गणेश जी को प्रिय है और गौरा माँ को भी . वाल्मिकी रामायण में श्री राम जी का रंग दुर्वा की तरह बताया गया है .

- इस पर नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है .
- यह शीतल और पित्त को शांत करने वाली है .
- दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है . इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है .
- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है .
- दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मूंह के छाले मिट जाते है .
- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन (उल्टी ) ठीक हो जाता है .
- दूब का रस दस्त में लाभकारी है .
- यह रक्त स्त्राव , गर्भपात को रोकता है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करता है .
- कुँए वाली दूब पीसकर मिश्री के साथ लेने से पथरी में लाभ होता है .
- इसे पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है .
- दूब की जड़ का काढा वेदना नाशक और मूत्रल होता है .
- दूब के रस को तेल में पका कर लगाने से दाद , खुजली और व्रण मिटते है .
- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में २-३ बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है .
- दूब के रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है ,बैठा हुआ तालू ऊपर चढ़ जाता है .